जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके | हिंदी विचार

"जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था। तेरी रहमत की हद क्या बताऊं, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था। ©नवनीत ठाकुर"

 जियारत करूं के माथा टेकूं,
तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था।
तेरी रहमत की हद क्या बताऊं,
इंशाल्लाह, तूने जो किया, 
मैं उसका हकदार न था।

©नवनीत ठाकुर

जियारत करूं के माथा टेकूं, तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था। तेरी रहमत की हद क्या बताऊं, इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था। ©नवनीत ठाकुर

जियारत करूं के माथा टेकूं,
तूने जो दिया, मैं उसके काबिल न था।
तेरी रहमत की हद क्या बताऊं,
इंशाल्लाह, तूने जो किया, मैं उसका हकदार न था।

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