सियासत चलती रही उनकी बदस्तूर, बिना अदब भी अवाम द | हिंदी शायरी

"सियासत चलती रही उनकी बदस्तूर, बिना अदब भी अवाम दो जून की रोटी में फंसी रही तब भी, अब भी ©Kamlesh Kandpal"

 सियासत चलती रही उनकी बदस्तूर,  बिना अदब भी 
अवाम दो जून की रोटी में फंसी रही तब भी, अब भी

©Kamlesh Kandpal

सियासत चलती रही उनकी बदस्तूर, बिना अदब भी अवाम दो जून की रोटी में फंसी रही तब भी, अब भी ©Kamlesh Kandpal

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