दिऐ कि तरह जलते हुए
भी रोशनी नसीब नहीं हमें ,
रात में जागते हुए ,
हर करवट में तू होता है ,
पीछे कि मेज़ ,
जिंदगी भर याद रहेगी मुझे ,
कितनी रातों कि थकान ,
तुझे देखते ही दूर हो जाती थी ,
मैं सितारा भी बन जाऊं तो ,
तेरे बिना चमक अधूरी ही रहेगी ,
तुझे ताकतें हुए अगर सदियां ,
भी गुजर जाएं तो कोई ग़म न होगा ,
तुझे कुछ इस कदर पुकारते हुए ,
खामोशियां होंठों पर ठहर गई है ,
जैसे वादियों में आवाज़ जाने के बाद ,
कभी वापस न आई हो ,
आंखों में सिलवटें पड़ जाएं ,
इस से पहले, चूम कर इन्हें कर्जदार कर दे ,
जंगल में उन लाखों पत्तों में एक हैं हम ,
जिसके वजूद को चिंगारी मिटा सकती है ,
एक बार और छू दे हमें ,
ऐसा न हो कहीं खुद कि महक भूल जाएं ,
आज कल वक्त, इतनी तेजी से चल रहा है ,
कि हम रूक भी गए तो ,
पिछा करने पर तेरे कदमों के
निशान तक न मिलेंगे ,
मुझे आज भी याद है बचपन में,
झूले पर बैठे हुए डर रहा था , लेकिन हंसता रहा ,
ये छुपाता रहा कि ,
अंदर की बात किसी से क्या कहें ,
परछाइयां है चारों तरफ ,
जो कुछ देखने नहीं देती ,
मैं हंस देता हूं जोर से ,
और बता देता हूं कोई डरा रहा है मुझे ,,,,
दिऐ कि तरह जलते हुए
भी रोशनी नसीब नहीं हमें ,
रात में जागते हुए ,
हर करवट में तू होता है ,
पीछे कि मेज़ ,
जिंदगी भर याद रहेगी मुझे ,
कितनी रातों कि थकान ,
तुझे देखते ही दूर हो जाती थी ,