◆◆ बारिश की बूँदें ◆◆
बरसती बूँदें अचानक ठहर गयी,
बहती हुई तेज हवा भी थम गई चुपचाप।
आपस में गुँथे हुये सब पर्वत
ढीले होकर तकने लगे आकाश।
उड़ते हुए रेत कण तटस्थ हो देखने लगे,
रास्ते सारे मुड़कर आने लगे झील की ओर।
फिर चहकते हुये जीवों की सब बोलियाँ छीन ली गयीं
और तब उस पल झील की एक लहर जागृत हुई!
वह सोचने लगी...🤔
क्या जन्म और पुनर्जन्म की बहस
उसके लिए भी है?
क्या उसका किनारे के पत्थरों से बार-बार टकरा जाना ,
पिछले जन्मों का परिणाम है?
या आगे आने वाले जन्मों के लिए,
जमा की जा रही कर्मों की पूँजी है?
यूँ उसका मचलना,
सूरज की किरणों में नाचना,
ये सब क्या वह खुद कर रही है
या करवाने वाला कोई और ही है?
और वह सिर्फ एक माध्यम मात्र है!
उसको यह जिज्ञासा भी हुई,
कि उसके जीवन का रिव्यू कैसा होगा?
रोज एक ही कार्य समान रूप से करने पर,
निरंतरता के लिए प्रशंसा होगी!
या बार-बार दोहराने पर,
मौलिकता के अभाव वाली आलोचना होगी?
उसने अपने चारों तरफ घूमकर देखा
और खुद से पूछ बैठी-
क्या वह सुन्दर दृश्य में टांक दिए जाने के लिए है केवल?
पहले से तय एक भूमिका निभा देने के लिए है बस?
कभी खुद तय करके किसी धारा में क्या बह पायेगी वह?
उसे पहाड़, हवा, रास्ते, रेत, कण
सब की दिनचर्या एकदम अपने जैसी लगी,
और उनसे जवाब पाने की उम्मीद खोकर
वह और निराश हो गई।
इन गहरे सवालों के जवाब लहर को
न मिलने थे और न मिले।
रास्ते फिर चलने लगे वैसे ही दिशाहीन,
जीव फिर से आवाज पा गए और निरर्थक कुछ कहने लगे।
पहाड़ों ने फिर लहरों को घेर लिया,
रेत, कण फिर उड़ने लगे तमाशा समाप्त देखकर।
हवायें फिर से पगलाकर सरसराने लगीं,
और लहरें फिर चल पड़ीं होकर उदास।😢
मगर! चलने के पहले
एक लहर मेरे पास आयी और तपाक से बोली-
"तुमने फिर मुझमें अपनी छवि खोज ली न ?"😕😍
-✍️ अभिषेक यादव
©Abhishek Yadav
#rain कविताएं