ये बुलबुले हैं समुद्र की झाग के,
ये किस्से हैं,जन्म मृत्यु की राग के।
बुलबुला जैसे जीवन हैं इंसान का
बनना जन्म तो,फूटना अवसान का।
ठीक वैसा ही एक उठा बुलबुला
पुनर्जन्म का जिससे भेद खुला।
प्रकृति देती शिक्षा, देती संकेत
कि यूँ ही नहीं हैं बुलबुले, ना ही रेत।
©Kamlesh Kandpal
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