फर्क नहीं पड़ता अब किसी के बोलते ना बोलने से,
साथ देने न देने से, अपना कहने ना कहने से,
खुशी में साथ हंसने ना हंसने से, गम बांटने न बांटने से,
राज में हमराज होने ना होने से,
अब फर्क नहीं पड़ता मुझे अकेले रहने ना रहने से,
लोग कहते हैं बदल गई हूं मैं, पर बदलना भी जरूरी था
लहजे लोगों के कुछ ऐसे थे, जो हर बोल पर चोट देते थे,
बहुत को अपना मन के भी देखा मैंने,
पर एक अजनबीपन हमेशा दिखाया है हर किसी ने,
भरोसा भी बहुतों पर जाताया मैंनें,
पर उस भरोसे ने ही पत्थर बनाया है मुझे,
हां लोग कहते हैं सच में बदल गई हूं मैं,
अब तो पानी की तरह हर सांचे में ढलना सीख लिया है मैंनें,
और अगर बूंद बूंद भर जाए घड़ा तो बहना भी सीख लिया है मैंने,
हां खुद के लिए जीना सीख लिया है मैंनें,
शांत बनी रहती हूं जब लगता है तेरा अपना यहां कोई नहीं,
और चहक भी उठती हूं कहीं जब थाम लेता है हाथ प्यार से कोई,
यह बदलाव अच्छा भी है जीने के लिए,
खुद के लिए घुटन सी भी बन गई है एक
पर औरों के लिए शायद थोडी सी घमंडी हो गई हूं मैं।
©ekant ek shor
#alone