बंद कमरे में पड़ी शहर की ज़िन्दगी
भाग - दौड़ से भरी शहर की ज़िन्दगी,
वक़्त के पाबंद में पड़ी शहर की ज़िन्दगी
अपनों के साथ होकर भी अपनों से दूर खड़ी शहर की ज़िन्दगी !..
सुकून और शांति से भरा गाँव मेरा
वो चाचा, चाची के प्यार से लेकर हरा - भरा खलियान मेरा,
बेशक सुविधा के लिए जाना पड़ता है शहर छोड़कर परिवार मेरा
दिल जीत लेता है हर शख्स का वक्त और व्यवहार मेरा,
हर ओहदे में शहर से लाख गुना बेहतर व बड़ा गाँव मेरा !..
"आई मुसीबत ज़िन्दगी पर
जब साँसों पर घटा छाई,
जो वर्षों तक पड़े रहे शहर में
उन्हें भी देर से ही लेकिन पहले 'गाँव' की याद आई !..." ❤😊
©Ankit Yaduvanshi
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