नव-भारत
राजनीति चौंगे से चिपके धरने पे बैंठे किसान
तो कहीं पटरी पे पसरे माँग रहे आरक्षण दान
इक्कीसवीं वीं सदी में भी पैरों में पडी बेड़ियां
क्या कुछ नहीं कर सकती हैं बेटीयां
धर्म के नाम पर लड़-कट मरो तुम
क्या यही कह गए राम रहीम ?
कहां तुम ईश्वर-अल्लाह को ढूँढ रहे?
वो हममे-तुममे तो बस रहे
चाँद तक तो पहुँच चुके पर
सोच अभी भी गिरी पडी है
बरसो बाद आज सवेरा आया जब
तब क्यो घर में छीप बैठे हैं हम?
अभिजात्य -अवर की खाई मिट रही
होगें हम -तुम एक समान
जिसमें ना हो कोई आंदोलन -आरक्षण
ना ही हो झगड़ा हिंदू -मुस्लिम,सिखों में ।
आओं यह नव -भारत से अब
न्याया करे हम -तुम मिलकर
आओं यह नव-भारत को मिलकर
और नवीन बनाए हम-तुम।
- प्रीति चौहान
©Preeti Chauhan
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