a-person-standing-on-a-beach-at-sunset ," मैं पहले से बेहतर हो गई हूं या बदतर "
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
चलती रहूं तो अपने पैरों को देखती हूँ,
ठहर जाऊँ तो अपनी धड़कन को सुनने लगती हूं
कभी कभी अचानक से शीशे के सामने दिल खोलकर नाचती हूँ,
हाँ मैं अब पहले से ज्यादा खुश रहने लगी हूँ,
अब दिमाग और दिल दोनों की दोस्ती करा दी है मैंने कभी कभी झगड़ने लगते है दोनों ,
पर प्यार से समझाने पर समझ जाते
अब मैं खुद को पहले से ज्यादा बेहतर लगने लगी हूँ,,
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
हाँ अभी भी मुझसे कुछ खामियां होगी शायद
शायद क्या ,हैं !
पर मैं पूरी कोशिश करूंगी उनको अपनाने की उनको समझाने की
और उनका पूरक बनने की ,
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
हाँ अब मैं अपनी खुशी को पहले रखने लगी हूँ
खुद को एक्स्ट्रा केयर और एक्स्ट्रा अटेंशन देनी लगी हूँ,,
हाँ अब मैं वो करती हूँ जिससे मुझे खुशी मिले , जिससे मुझे सुकून मिले
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
पर अब मेरे लिए ये मायने नहीं रखता क्या होगा,,कैसे होगा,,
कोई मतलब नहीं लगता अब इस सबका मुझे
अब बस मैं अपने इस पल को इस लम्हें को दिल खोलकर जीना चाहती हूँ ,
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
हाँ थोड़ा थोड़ा मुझे ये कभी कभी अजीब लगने लगता है
पर फिर मैं अपने सफ़र को याद करती तो लगता जैसे बहोत लंबी चडाई चड ली
अब बस यही ठहरना है यही जीना है,
पता नहीं , मैं पहले से ज्यादा बेहतर या बदतर हो गई हूं
पर यही तो है वो शायद मुझे जिसकी तलाश थी
मेरा सुकून मेरी गहराई मेरी खुशी यही तो है यहीं तो है
बस इसलिए अब इसी पल में ठहराना चाहती हूँ
बिना किसी शिकवा शिकायतों के खुद के साथ खुद के लिए जीना चाहती हूँ।
©Hymn
#SunSet