अफ़साना अगर हमें खुद में कोई बदलाव लाना हो तो हम उस

"अफ़साना अगर हमें खुद में कोई बदलाव लाना हो तो हम उस बदलाव को हर पल याद रखने की कोशिश करते है लेकिन आखिर में होता यह है कि उन नाजुक मौकों पर हम उस बदलाव को भूल जाते है। यही वजह है परिस्थितियां जस की तस बनी रहती है। लेकिन अगर हम उस बदलाव को आत्मसात् कर ले, उसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लें तो ना तो उसे याद रखने की जरूरत पड़ती है और ना ही कभी उसे भूल सकते हैं। क्योंकि अब वह बदलाव हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा है। हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम खुद में किसी भी बदलाव के लिए अपनी याददाश्त पर निर्भर होते है ना कि उसे आत्मसात् करने की अपनी आदत पर। दरअसल हम आगे तो बढ़ना चाहते है, पर साथ मे पीछे भी रहना चाहते है। औऱ इस आगे-पिछे के चक्कर मे उलझकर सुकून से कही नही रह पाते है। हम किसी बदलाव को आत्मसात् तभी कर सकते है जब हम उस बदलाव को स्वीकार कर ले, और उस बदलाव को अपना पूरा समर्थन दे दे। इसीलिए कहते है कि कुछ जान लेना, कुछ पा लेना अलग बात है, लेकिन उसे अपना बना लेना, आत्मसात् कर लेना बिल्कुल अलग बात। ©Prince Brijesh"

 अफ़साना अगर हमें खुद में कोई बदलाव लाना हो तो हम उस बदलाव को हर पल याद रखने की कोशिश करते है लेकिन आखिर में होता यह है कि उन नाजुक मौकों पर हम उस बदलाव को भूल जाते है। यही वजह है परिस्थितियां जस की तस बनी रहती है।
लेकिन अगर हम उस बदलाव को आत्मसात् कर ले, उसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लें तो ना तो उसे याद रखने की जरूरत पड़ती है और ना ही कभी उसे भूल सकते हैं। क्योंकि अब वह बदलाव हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा है।
हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम खुद में किसी भी बदलाव के लिए अपनी याददाश्त पर निर्भर होते है ना कि उसे आत्मसात् करने की अपनी आदत पर। दरअसल हम आगे तो बढ़ना चाहते है, पर साथ मे पीछे भी रहना चाहते है। औऱ इस आगे-पिछे के चक्कर मे उलझकर सुकून से कही नही रह पाते है। हम किसी बदलाव को आत्मसात् तभी कर सकते है जब हम उस बदलाव को स्वीकार कर ले, और उस बदलाव को अपना पूरा समर्थन दे दे। इसीलिए कहते है कि कुछ जान लेना, कुछ पा लेना अलग बात है, लेकिन उसे अपना बना लेना, आत्मसात् कर लेना बिल्कुल अलग बात।

©Prince Brijesh

अफ़साना अगर हमें खुद में कोई बदलाव लाना हो तो हम उस बदलाव को हर पल याद रखने की कोशिश करते है लेकिन आखिर में होता यह है कि उन नाजुक मौकों पर हम उस बदलाव को भूल जाते है। यही वजह है परिस्थितियां जस की तस बनी रहती है। लेकिन अगर हम उस बदलाव को आत्मसात् कर ले, उसे अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लें तो ना तो उसे याद रखने की जरूरत पड़ती है और ना ही कभी उसे भूल सकते हैं। क्योंकि अब वह बदलाव हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा है। हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हम खुद में किसी भी बदलाव के लिए अपनी याददाश्त पर निर्भर होते है ना कि उसे आत्मसात् करने की अपनी आदत पर। दरअसल हम आगे तो बढ़ना चाहते है, पर साथ मे पीछे भी रहना चाहते है। औऱ इस आगे-पिछे के चक्कर मे उलझकर सुकून से कही नही रह पाते है। हम किसी बदलाव को आत्मसात् तभी कर सकते है जब हम उस बदलाव को स्वीकार कर ले, और उस बदलाव को अपना पूरा समर्थन दे दे। इसीलिए कहते है कि कुछ जान लेना, कुछ पा लेना अलग बात है, लेकिन उसे अपना बना लेना, आत्मसात् कर लेना बिल्कुल अलग बात। ©Prince Brijesh

#Afsana

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