साहित्य सृजन के लिए रचनात्मकता के साथ हृदय में भावुकता और संवेदनशीलता भवन निर्माण में ईंट-सीमेंट की तरह जरूरी होती है और प्रारब्ध के प्रारंभ प्राकत्थन से ही विद्वान आचार्य श्री के एस भारद्वाज की भावुकता के दर्शन हो जाते हैं । आज के मशीनीकरण ने जब इंसान को भी यंत्र में बदल दिया है और निरंतर बढ़ती महत्वाकांक्षाओं ने निराशा और कुंठा को स्थायित्व सा दे दिया
©Suresh
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