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"ज़िन्दगी गुलज़ार है वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी. ©बेनाम शायर"

 ज़िन्दगी गुलज़ार है   वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी
 नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो 
अदालत भी तुम्हारी थी.

©बेनाम शायर

ज़िन्दगी गुलज़ार है वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी. ©बेनाम शायर

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