ख़ुद से रूठे हैं हम लोग।
टूटे-फूटे हैं हम लोग॥
सत्य चुराता नज़रें हमसे,
इतने झूठे हैं हम लोग।
इसे साध लें, उसे बांध लें,
सचमुच खूँटे हैं हम लोग।
क्या कर लेंगी वे तलवारें,
जिनकी मूँठें हैं हम लोग।
मय-ख़्वारों की हर महफ़िल में,
खाली घूंटें हैं हम लोग।
हमें अजायबघर में रख दो,
बहुत अनूठे हैं हम लोग।
हस्ताक्षर तो बन न सकेंगे,
सिर्फ़ अँगूठे हैं हम लोग।
"आदर्श मिश्र"
©Gautam ADARSH Mishra
मोटिवेशनल कोट्स ऑफ़ द डे