फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है रोकती

"फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है। मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है। कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है। सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए, आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था, घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है।"

 फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है
रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है
मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है।
मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था
दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था 
आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है
हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको
पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है
हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है।
सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं
आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए,
आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था,
घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था
आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू
आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर
पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था
पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है
तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है।

फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है। मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है। कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है। सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए, आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था, घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है।

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