ये बवंडर बिकराल हो रहा है, कॉरॉना का आतंक कुख्यात हो रहा है
सूक्ष्म ये वायरस घुसपैठियों सा अपने कदम हमारी सीमाओं में बढ़ा रहा है
पर साथियों तुम डरना मत, बस सब्र से थोड़ा और घर में ही रहना तुम
क्यूंकि कोई है जो हमारे लिए घर से निकल उस कॉरॉना से लड़ने जा रहा है।
तुम खिलखिला रहे हो अपनों संग, क्यूंकि कोई है जो अपनो का मोह छोड़कर बाहर आ रहा है
थम चुका है बहुत कुछ, थप पड़ा है सब कुछ, पर वो आज भी बिन थके हमारे लिए भागे जा रहा है
साथियों कोई है योद्धा जो बस हमारे सुरक्षा में खुद को लुटा रहा है।
कहीं पत्थर तो कहीं थूक लोग उनपर बरसा रहे है, जहां बरसाना था फूल वहां बस नफरतों के शूल बिछा रहे है
पर कोई जिक्र नहीं जख्मों की, देखो कैसे वो मौत के मुंह से इंसानों को खींच ला रहे है
कोई है खुदा जो इंसानियत को ही अपना मजहब बता रहे है।
बंद मंदिर, मस्जिद सूने पड़े है, क्यूंकि अस्पतालों में आज साक्षात देव खड़े है
हम घर में रहकर कॉरॉना से घबरा रहे है,
पर कोई है योद्धा जो कॉरॉना के घर जाकर उसे मात दे आ रहे है।
शिकन नहीं कोई, उनके चेहरों और हाथो के घाव उनके वीरता की गाथा सुना रहे है
कोई है जो परिवार छोड़कर, लोक सेवा ही अपना धर्म बता रहे है।
जब पक रही है पकवान घरों में, खाकी वर्दी धूप में सिक रही है
स्वाद के लिए हम खा रहे है भरे पेट भी, अरे पूछो तो क्या वो भर पेट भी खा रहे है?
घरों में बंद खुद को लाचार हम समझ रहे है, अरे पूछो उन रिपोर्टरों से क्यों कॉरॉना में भी घर से निकल रहे है?
तुच्छ जिनको कहते रहे, कचरे के ढेर सा बस बोझ समझते रहे
आज वही तुच्छ अमीरों की बस्ती उजड़ने से बचा रहे है,
देश का कचरा वो साफ करके पूरे देश को महामारी की गिरफ्त से छुड़ा रहे है
दोस्त है कोई योद्धा जो खुद बीमार होकर भी हमें बीमारी से बचा रहे है।
फिक्र ना कर दोस्त, हम है तेरे आगे खड़े, बिन कहे ही कर्म से बतला रहे है
भले कर्ण सा कवच नहीं पास फिर भी रण में वज्र सा हर आखिरी वार खा रहे है
हां है कोई योद्धा जो निष्ठूर वायरस को सबक सिखा रहे है।
देश तू फिक्र न कर, तेरे पूत है वीर बड़े, अपनी माटी का कर्ज चुका रहे है
होगी कॉरॉना प्रचंड शत्रु, पर देखो कैसे मेरे योद्धाओं के आगे ये कॉरॉना भी परास्त हुए जा रहे है।
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