Supriya Kumari

Supriya Kumari

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लड़ लेते है उनसे, थोड़े से कभी जादा भी खफा होने को दिल भी करता है घंटो का पर डर जाता है दिल की कही ये जिंदगी ही ना हो बस मिनटों का

 लड़ लेते है उनसे, थोड़े से कभी जादा भी
खफा होने को दिल भी करता है घंटो का
पर डर जाता है दिल की कही 
ये जिंदगी ही ना हो बस मिनटों का

#love #besthindi #shayari

11 Love

जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी सोचती हूं कैसे नौ मास तू सब्र से बिताई होगी जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे जगाई थी मै पर मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं, पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू

#mothers_day #Hindi #poem  जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी 
पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी
सोचती हूं  कैसे नौ मास तू सब्र से  बिताई होगी
जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी
याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे  जगाई थी मै
पर  मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी
पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं,
पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी
याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी
पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी
 तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी
पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी
पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी
पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर
पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी
मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर
पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू
पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै
पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू
पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर
पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू
मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू
पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू
मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी
पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू
बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू
पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, 
जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू
भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं
पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी
तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू

ये बवंडर बिकराल हो रहा है, कॉरॉना का आतंक कुख्यात हो रहा है सूक्ष्म ये वायरस घुसपैठियों सा अपने कदम हमारी सीमाओं में बढ़ा रहा है पर साथियों तुम डरना मत, बस सब्र से थोड़ा और घर में ही रहना तुम क्यूंकि कोई है जो हमारे लिए घर से निकल उस कॉरॉना से लड़ने जा रहा है। तुम खिलखिला रहे हो अपनों संग, क्यूंकि कोई है जो अपनो का मोह छोड़कर बाहर आ रहा है थम चुका है बहुत कुछ, थप पड़ा है सब कुछ, पर वो आज भी बिन थके हमारे लिए भागे जा रहा है साथियों कोई है योद्धा जो बस हमारे सुरक्षा में खुद को लुटा रहा है। कहीं पत्थर तो कहीं थूक लोग उनपर बरसा रहे है, जहां बरसाना था फूल वहां बस नफरतों के शूल बिछा रहे है पर कोई जिक्र नहीं जख्मों की, देखो कैसे वो मौत के मुंह से इंसानों को खींच ला रहे है कोई है खुदा जो इंसानियत को ही अपना मजहब बता रहे है। बंद मंदिर, मस्जिद सूने पड़े है, क्यूंकि अस्पतालों में आज साक्षात देव खड़े है हम घर में रहकर कॉरॉना से घबरा रहे है, पर कोई है योद्धा जो कॉरॉना के घर जाकर उसे मात दे आ रहे है। शिकन नहीं कोई, उनके चेहरों और हाथो के घाव उनके वीरता की गाथा सुना रहे है कोई है जो परिवार छोड़कर, लोक सेवा ही अपना धर्म बता रहे है। जब पक रही है पकवान घरों में, खाकी वर्दी धूप में सिक रही है स्वाद के लिए हम खा रहे है भरे पेट भी, अरे पूछो तो क्या वो भर पेट भी खा रहे है? घरों में बंद खुद को लाचार हम समझ रहे है, अरे पूछो उन रिपोर्टरों से क्यों कॉरॉना में भी घर से निकल रहे है? तुच्छ जिनको कहते रहे, कचरे के ढेर सा बस बोझ समझते रहे आज वही तुच्छ अमीरों की बस्ती उजड़ने से बचा रहे है, देश का कचरा वो साफ करके पूरे देश को महामारी की गिरफ्त से छुड़ा रहे है दोस्त है कोई योद्धा जो खुद बीमार होकर भी हमें बीमारी से बचा रहे है। फिक्र ना कर दोस्त, हम है तेरे आगे खड़े, बिन कहे ही कर्म से बतला रहे है भले कर्ण सा कवच नहीं पास फिर भी रण में वज्र सा हर आखिरी वार खा रहे है हां है कोई योद्धा जो निष्ठूर वायरस को सबक सिखा रहे है। देश तू फिक्र न कर, तेरे पूत है वीर बड़े, अपनी माटी का कर्ज चुका रहे है होगी कॉरॉना प्रचंड शत्रु, पर देखो कैसे मेरे योद्धाओं के आगे ये कॉरॉना भी परास्त हुए जा रहे है।

#corona_warriors #GoCorona #corona #Hindi #poem  ये बवंडर बिकराल हो रहा है, कॉरॉना का आतंक कुख्यात हो रहा है
सूक्ष्म ये वायरस घुसपैठियों सा अपने कदम हमारी सीमाओं में बढ़ा रहा है
पर साथियों तुम डरना मत, बस सब्र से थोड़ा और घर में ही रहना तुम
क्यूंकि कोई है जो हमारे लिए घर से निकल उस कॉरॉना से लड़ने जा रहा है।
तुम खिलखिला रहे हो अपनों संग, क्यूंकि कोई है जो अपनो का मोह छोड़कर बाहर आ रहा है
थम चुका है बहुत कुछ, थप पड़ा है सब कुछ, पर वो आज भी बिन थके हमारे लिए भागे जा रहा है
साथियों कोई है योद्धा जो बस हमारे सुरक्षा में खुद को लुटा रहा है।
कहीं पत्थर तो कहीं थूक लोग उनपर बरसा रहे है, जहां बरसाना था फूल वहां बस नफरतों के शूल बिछा रहे है
पर कोई जिक्र नहीं जख्मों की, देखो कैसे वो मौत के मुंह से इंसानों को खींच ला रहे है
कोई है खुदा जो इंसानियत को ही अपना मजहब बता रहे है।
बंद मंदिर, मस्जिद सूने पड़े है, क्यूंकि अस्पतालों में आज साक्षात देव खड़े है
हम घर में रहकर कॉरॉना से घबरा रहे है,
पर कोई है योद्धा जो कॉरॉना के घर जाकर उसे मात दे आ रहे है।
शिकन नहीं कोई, उनके चेहरों और हाथो के घाव उनके वीरता की गाथा सुना रहे है
कोई है जो परिवार छोड़कर, लोक सेवा ही अपना धर्म बता रहे है।
जब पक रही है पकवान घरों में, खाकी वर्दी धूप में सिक रही है
स्वाद के लिए हम खा रहे है भरे पेट भी, अरे पूछो तो क्या वो भर पेट भी खा रहे है?
घरों में बंद खुद को लाचार हम समझ रहे है, अरे पूछो उन रिपोर्टरों से क्यों कॉरॉना में भी घर से निकल रहे है?
तुच्छ जिनको कहते रहे, कचरे के ढेर सा बस बोझ समझते रहे
आज वही तुच्छ अमीरों की बस्ती उजड़ने से बचा रहे है,
देश का कचरा वो साफ करके पूरे देश को महामारी की गिरफ्त से छुड़ा रहे है
 दोस्त है कोई योद्धा जो खुद बीमार होकर भी हमें बीमारी से बचा रहे है।
फिक्र ना कर दोस्त, हम है तेरे आगे खड़े, बिन कहे ही कर्म से बतला रहे है
भले कर्ण सा कवच नहीं पास फिर भी रण में वज्र सा हर आखिरी वार खा रहे है
 हां है कोई योद्धा जो निष्ठूर वायरस को सबक सिखा रहे है।
देश तू फिक्र न कर, तेरे पूत है वीर बड़े, अपनी माटी का कर्ज चुका रहे है
होगी कॉरॉना प्रचंड शत्रु, पर देखो कैसे मेरे योद्धाओं के आगे ये कॉरॉना भी परास्त हुए जा रहे है।

क्यों रात में भी सबेर का राह तकते हो? कर लिए सुबह का स्वागत बहुत, चलो आज रात का भी स्वागत करते है पर्दा हटा,खिड़की खोल धूप को सुबह भीतर बुलाते हो चलो आज रात में यही बाहर सितारों के नीचे खाट बिछाते है दिन की रोशनी में भागते है ख्वाबों के लिए, क्या रात बस नींद में ख्वाब देखने के लिए है? क्यों नहीं आज रात के अंधेरे में भी, कोई ख्वाब जगाते है? चल पड़े हो उमंग लिए एक राह पर तुम भोर में, फिर क्यों रात के अंधियारे से कतराते हो? चल पड़े हो छोर पकड़ तुम धार की, फिर क्यों चट्टानों के आने से घबराते हो? जरूरी नहीं मुहाना दिन में ही पास आए, फिर क्यों रात से तू हिचकिचाते हो उजियारे में दौड़ते तो क्या बड़ा उत्कर्ष है, चलो देखते है अंधियारे में कहां तक चल पाते हो शाम ढलने से निराश हो जाते हो, फिर रात ढलने का क्यों नहीं मातम मनाते हो? उदयाचल ही उम्मीद की मापदंड नहीं, क्यों नहीं रात को भी खुशियों कि इकाई बनाते हो सुविधाओं में संभावनाएं तो होती ही है, क्यों नहीं कमियों को भी उपलब्धियां बनाते हो? दिनकर की खूबी सबको पता है, क्यों नहीं शशि को ही जीत का आधार बनाते हो दिन का बखान सब लोग करते है क्यों नहीं रात से बतिया नया कुछ सीख जाते हो?

#Motivational #Inspiration #Hindi  क्यों रात में भी सबेर का राह तकते हो?
कर लिए सुबह का स्वागत बहुत, 
चलो आज रात का भी स्वागत करते है
पर्दा हटा,खिड़की खोल धूप को सुबह भीतर बुलाते हो
चलो आज रात में यही बाहर सितारों के नीचे खाट बिछाते है
दिन की रोशनी में भागते है ख्वाबों के लिए,
क्या रात बस नींद में ख्वाब देखने के लिए है?
क्यों नहीं आज रात के अंधेरे में भी, कोई ख्वाब जगाते है?
चल पड़े हो उमंग लिए एक राह पर तुम भोर में,
फिर क्यों रात के अंधियारे से कतराते हो?
चल पड़े हो छोर पकड़ तुम धार की, 
फिर क्यों चट्टानों के आने से घबराते हो?
जरूरी नहीं मुहाना दिन में ही पास आए, 
फिर क्यों रात से तू हिचकिचाते हो
उजियारे में दौड़ते तो क्या बड़ा उत्कर्ष है, 
चलो देखते है अंधियारे में कहां तक चल पाते हो
शाम ढलने से निराश हो जाते हो, 
फिर रात ढलने का क्यों नहीं मातम मनाते हो?
उदयाचल ही उम्मीद की मापदंड नहीं, 
क्यों नहीं रात को भी खुशियों कि इकाई बनाते हो
सुविधाओं में संभावनाएं तो होती ही है, 
क्यों नहीं कमियों को भी उपलब्धियां बनाते हो?
दिनकर की खूबी सबको पता है, 
क्यों नहीं शशि को ही जीत का आधार बनाते हो
दिन का बखान सब लोग करते है
क्यों नहीं रात से बतिया नया कुछ सीख जाते हो?

फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है। मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है। कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है। सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए, आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था, घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है। बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है। आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है।

#Homesick #lockdown #hindhi #Home #maa  फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है
रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है
मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है।
मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था
दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था 
आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है
हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको
पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है
हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है।
सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं
आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए,
आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था,
घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था
आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू
आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर
पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था
पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है
तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है।

#maa ghar yaad aa raha hai #lockdown #Homesick #Home #hindhi

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है मनुज ये जीवन कैसा, कुछ समझ नहीं आता है अपने अंतर की पीड़ाओं में दबा चला जाता है खेल खेलता कितना पर भीतर बिखलाता है हृदय सहित यू क्रीड़ा ऐसे सहज नहीं होता है कर्म - अकर्म में वो उलझा सुलझ नहीं पाता है धर्म क्या अधर्म क्या, कभी भीतर अकुलाता है हृदय के वो दावानल को बुझा नहीं पाता है मुखमंडल पर कुसुम लिए भीतर कुंठित पाता है जीवन रस में हुए विलीन, पर एक हला पीता है बाहर दिखता अंगराज, भीतर कर्ण छला जाता है जीवन की ये मादकता, संकुचित किए जाता है थक जाता मनुस्मृतियो से निकल नहीं पाता है तब लगता है क्यों मनुज ये हृदय लिए आता है हृदय रहित जो ये होता, क्यों फिर दुख ये पाता पर मनुज फिर कैसे होता हृदय विहीन जो आता उपहास नहीं ये मानव पीड़ा, उपहार बन कर है अाई विश्व गवाह है इतिहास बनी वो जो पीड़ा हंस सह पाई हे मनुज! तू सुधा है जो हृदय मंथन से अाई पाकर तू अमर हो जाए, जो मोल समझ में आई ले तू पीड़ा जीवन समर का, बना रहे अभिलाषी चलता रह तू कर्म पटल पर, बनकर एक वनवासी।

#Motivational #Inspiration #kavita #Hindi #poem  है मनुज ये जीवन कैसा, कुछ समझ नहीं आता है
अपने अंतर की पीड़ाओं में दबा चला जाता है
खेल खेलता कितना पर भीतर बिखलाता है
हृदय सहित यू क्रीड़ा ऐसे सहज नहीं होता है
कर्म - अकर्म में वो उलझा सुलझ नहीं पाता है
धर्म क्या अधर्म क्या, कभी भीतर अकुलाता है
हृदय के वो दावानल को बुझा नहीं पाता है
मुखमंडल पर कुसुम लिए भीतर कुंठित पाता है
जीवन रस में हुए विलीन, पर एक हला पीता है
बाहर दिखता अंगराज, भीतर कर्ण छला जाता है
जीवन की ये मादकता, संकुचित किए जाता है
थक जाता मनुस्मृतियो से निकल नहीं पाता है
तब लगता है क्यों मनुज ये हृदय लिए आता है
हृदय रहित जो ये होता, क्यों फिर दुख ये पाता
पर मनुज फिर कैसे होता हृदय विहीन जो आता
उपहास नहीं ये मानव पीड़ा, उपहार बन कर है अाई
विश्व गवाह है इतिहास बनी वो जो पीड़ा हंस सह पाई
हे मनुज! तू सुधा है जो हृदय मंथन से अाई
पाकर तू अमर हो जाए, जो मोल समझ में आई
ले तू पीड़ा जीवन समर का, बना रहे अभिलाषी
चलता रह तू कर्म पटल पर, बनकर एक वनवासी।
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