"कभी बुझी आग से धुआँ सा उठता है,
मेरे मर्ज की दवा का ना तुझे पता है ना मुझे पता है,
दिल चीर के देख मेरा,
कमबख़्त मर्ज दिन रात सीने में खंजर सा चुभता है।💔"
कभी बुझी आग से धुआँ सा उठता है,
मेरे मर्ज की दवा का ना तुझे पता है ना मुझे पता है,
दिल चीर के देख मेरा,
कमबख़्त मर्ज दिन रात सीने में खंजर सा चुभता है।💔