ज़िंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है। इस संघर्ष भरे जीवन का सफर करते समय हम राह में खड़े होकर अपने जीवन के निशांत होने की प्रतीक्षा करते हैं । उस समय हम ये भूल जाते हैं कि ये सफर कैलाश के सफर की तरह कठिन ही है। अब हमें विचार करना है कि इस भोर होने की प्रतीक्षा खड़े होकर करनी है या फिर सफर करके।
©Arjun Bharat आदित्य
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