वो कैसे मुझे भूल ग‌ई, कि दो वक्त साथ में गुज़रा भी | हिंदी कविता

"वो कैसे मुझे भूल ग‌ई, कि दो वक्त साथ में गुज़रा भी नहीं। ये मेरा आखिरी सुन ले, ज़िन्दगी में तू नहीं तो कोई दुसरा भी नही।। सुना है मेरे बाद उनसे भी बेवफा कर ग‌ई, देखो न मेंहदी का रंग ठीक से उतरा भी नहीं।। सोचा था कि हमसे बिछड़ कर वो ज्यादा खुश रहेंगी, चेहरे का रंग तो देखो पहले से ज्यादा निखरा भी नहीं।। जो कहते थे मर जायेंगे रो रो कर तुमसे बिच्छड़ कर, आज हम ने देखा उनकी आंखों में, आंशुओ का एक कतरा भी नहीं। वो अमानत अब किसी की भी रहे, बस खूदां उन्हें सलामत रखे, मुझे उन पे अब कोई पहरा भी नहीं।। रख देता सारी खुशियां उनके कदमों में, अफसोस,,, उनके कदम रुकें नहीं और बेवफा वक्त ठहरा भी नहीं।। कि‍,,,हमने फूलों से सिखा है टूट कर दुसरो को खुश रखना, कुचलने को तो दूर फूलों को कभी हाथ से मसला भी नहीं।। ©P. k Suman "

वो कैसे मुझे भूल ग‌ई, कि दो वक्त साथ में गुज़रा भी नहीं। ये मेरा आखिरी सुन ले, ज़िन्दगी में तू नहीं तो कोई दुसरा भी नही।। सुना है मेरे बाद उनसे भी बेवफा कर ग‌ई, देखो न मेंहदी का रंग ठीक से उतरा भी नहीं।। सोचा था कि हमसे बिछड़ कर वो ज्यादा खुश रहेंगी, चेहरे का रंग तो देखो पहले से ज्यादा निखरा भी नहीं।। जो कहते थे मर जायेंगे रो रो कर तुमसे बिच्छड़ कर, आज हम ने देखा उनकी आंखों में, आंशुओ का एक कतरा भी नहीं। वो अमानत अब किसी की भी रहे, बस खूदां उन्हें सलामत रखे, मुझे उन पे अब कोई पहरा भी नहीं।। रख देता सारी खुशियां उनके कदमों में, अफसोस,,, उनके कदम रुकें नहीं और बेवफा वक्त ठहरा भी नहीं।। कि‍,,,हमने फूलों से सिखा है टूट कर दुसरो को खुश रखना, कुचलने को तो दूर फूलों को कभी हाथ से मसला भी नहीं।। ©P. k Suman

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