मज़दूरी करना हमारी , मजबूरी है कोई शौक़ नहीं , हमारा

"मज़दूरी करना हमारी , मजबूरी है कोई शौक़ नहीं , हमारा भी एक बचपन है ,जिसमे बचपन जैसा कुछ नहीं ,, मंदिरों में लगाए जाते है , छप्पन भोग , हमारा भूखा पेट तो , मंदिर की दान पेटी भी नहीं ,, जीवन का सारा बोझ , इन नन्हे कंधों पर लिए हैं , रद्दी ढोते है हम , पर कंधों पर किताब का बैग नही ,, जिस जगह को हमने , अपने हाँथो से है साफ़ किया , वहाँ खेलने तक का भी , हमे अधिकार नहीं ,, दिन सारा सड़को पे गुज़र जाता है , रात सोना तो है ,मगर चैन की नींद नही,, कभी धिक्कार तो , तो कभी दया दिखाते हैं , नियम तो बन गए पर , बाल मजदूरी हटाता कोई नही ,, सब कहते है बच्चे देश का , उज्जवल भविष्य है , हम जैसो का क्या ..... हमारा तो कोई भविष्य ही नहीं ,, हर कमी से ज्यादा , पेट की भूख सताती है हमे , कभी खाली पेट सोये कभी एक निवाला भी मिला नही ,, कुदरत ने हम सब को जैसा ही बनाया है, फिर भी बहुत अलग है हम , क्या गर्मी क्या सर्दी , हमारे लिए तो खुला आसमान है ,सर के ऊपर छत नहीं ,,"

 मज़दूरी करना हमारी , मजबूरी है कोई शौक़ नहीं ,
हमारा भी एक बचपन है ,जिसमे  बचपन जैसा कुछ नहीं ,,

मंदिरों में लगाए जाते है , छप्पन भोग ,
हमारा भूखा पेट तो , मंदिर की दान पेटी भी नहीं ,,

जीवन का सारा बोझ , इन नन्हे कंधों पर लिए हैं ,
रद्दी ढोते है हम , पर कंधों पर किताब का बैग नही ,,

जिस जगह को हमने , अपने हाँथो से है साफ़ किया ,
वहाँ खेलने तक का भी , हमे अधिकार नहीं ,,

दिन सारा सड़को पे गुज़र जाता है ,
रात सोना तो है ,मगर चैन की नींद नही,,

कभी धिक्कार तो , तो कभी दया दिखाते हैं ,
नियम तो बन गए पर , बाल मजदूरी हटाता कोई नही ,,

सब कहते है बच्चे देश का , उज्जवल भविष्य है ,
हम जैसो का क्या ..... हमारा तो कोई भविष्य ही नहीं ,,

हर कमी से ज्यादा , पेट की भूख सताती है हमे ,
कभी खाली पेट सोये कभी एक निवाला भी मिला नही ,,

कुदरत ने हम सब को  जैसा ही बनाया है, फिर भी बहुत अलग है हम ,
क्या गर्मी क्या सर्दी , हमारे लिए तो खुला आसमान है
 ,सर के ऊपर छत नहीं ,,

मज़दूरी करना हमारी , मजबूरी है कोई शौक़ नहीं , हमारा भी एक बचपन है ,जिसमे बचपन जैसा कुछ नहीं ,, मंदिरों में लगाए जाते है , छप्पन भोग , हमारा भूखा पेट तो , मंदिर की दान पेटी भी नहीं ,, जीवन का सारा बोझ , इन नन्हे कंधों पर लिए हैं , रद्दी ढोते है हम , पर कंधों पर किताब का बैग नही ,, जिस जगह को हमने , अपने हाँथो से है साफ़ किया , वहाँ खेलने तक का भी , हमे अधिकार नहीं ,, दिन सारा सड़को पे गुज़र जाता है , रात सोना तो है ,मगर चैन की नींद नही,, कभी धिक्कार तो , तो कभी दया दिखाते हैं , नियम तो बन गए पर , बाल मजदूरी हटाता कोई नही ,, सब कहते है बच्चे देश का , उज्जवल भविष्य है , हम जैसो का क्या ..... हमारा तो कोई भविष्य ही नहीं ,, हर कमी से ज्यादा , पेट की भूख सताती है हमे , कभी खाली पेट सोये कभी एक निवाला भी मिला नही ,, कुदरत ने हम सब को जैसा ही बनाया है, फिर भी बहुत अलग है हम , क्या गर्मी क्या सर्दी , हमारे लिए तो खुला आसमान है ,सर के ऊपर छत नहीं ,,

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