कभी तुम्हें बुरी लगती है , मेरी बातों की रफ़्तार । | हिंदी कविता

"कभी तुम्हें बुरी लगती है , मेरी बातों की रफ़्तार । कभी चिढ़ कर कहते हो, इतनी चुप्पी क्यों है यार। कैसे बताऊं तुमको! मेरा भी अपना मन होता है । मैं आपकी चाभी वाली गुड़िया, , तो नहीं हूं ना सरकार! ©Mamta Singh"

 कभी तुम्हें बुरी लगती है ,
मेरी बातों की रफ़्तार ।
कभी चिढ़ कर कहते हो,
इतनी चुप्पी क्यों है यार।
कैसे बताऊं तुमको!
मेरा भी अपना मन होता है ।
मैं आपकी चाभी वाली गुड़िया, ,
तो नहीं हूं ना सरकार!

©Mamta Singh

कभी तुम्हें बुरी लगती है , मेरी बातों की रफ़्तार । कभी चिढ़ कर कहते हो, इतनी चुप्पी क्यों है यार। कैसे बताऊं तुमको! मेरा भी अपना मन होता है । मैं आपकी चाभी वाली गुड़िया, , तो नहीं हूं ना सरकार! ©Mamta Singh

#heartbroken

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