साथ चलने की कसम खाई भी तो क्या
आदमी की नियत बदल जाये भी तो क्या
बसंत तो फिर आएगा ही
पत्तियां टूटकर बिखर जाएं भी तो क्या
जीत-हार ज़िंदगी के दो पहलू हैं
सो बस चलता चल तू
पावों में छाले पड़ जाएं भी तो क्या
ऊंची उड़ान का माद्दा रख
लोग न साथ आएं भी तो क्या
तरकश में उम्मीद ज़िंदा रख अपने
कुछ निशाने चूक जाएं भी तो क्या
जो जलेगा वही देगा रौशनी
अँधेरे राह में आएं भी तो क्या
बसंत तो फिर आएगा ही
पत्तियां टूटकर बिखर जाएं भी तो क्या
(बालमुकुन्द त्रिपाठी)
©Balmukund Tripathi
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