न मिलों प्रियवर भौतिक छवि में।
मिलते रहो प्रियवर लौकिक छवि में।
रहूं मैं व्याकुल तो तुम स्पर्श करना।
मेरे मन वीणा का तार तुम स्पर्श करना।
छेड़ देना तान अनहद स्वर का।
मैं खो जाऊं तुम रहूं न मैं किसी वर का।
न मिलों प्रियवर सामने से आके।
मिलते रहों प्रियवर अंदर समा के।
©Narendra kumar
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