नदी से कई घड़े पानी निकाले
वो तालाब भरने में लगा था
सुबह से शाम होने लगी थी
रोशनी धुंध सी छंटने लगी थी
उसके हाथों के छाले लावा से दिखने लगे थे
कांपते पैर चलने की कवायद करते दिख रहे थे
बरामदे में बैठा था मालिक
ये सब देखता था, चाय होठों से लगाए
शिकायत माथे पर थी पर संतोष न था
मानो आज आखिरी सूरज ढला हो ।
©gaurav
#Aasmaan