पल्लव की डायरी
असुरक्षा की भावना ,
सकून दिल का खा रही है
अनहोनी ना घट जाये
पगो को पीछे हटा रही है
बढ़ रही है तन्त्रो की अराजकता
जीवन को जंग की तरह खा रही है
हजार खतरों को झेलकर
मजबूरी हर कदम सता रही है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
#CalmingNature बढ़ रही तन्त्रो की अराजकता