White कितनी प्यारी कितनी सुन्दर कितनी अजमल वो आँखें
देखे जो भी कर देती हैं उस को घायल वो आँखें
दिल में पसरे सन्नाटे को बाँध के अपने पोरों से
बन के धड़कन छम-छम करती जैसे पायल वो आँखें
शाम सवेरे डोले ऐसे मन के वीराँ आँगन में
दूर गगन में गोया कोई उड़ता झाँकल वो आँखें
बचने को मुश्ताक़ जहां से मस्त रुपहली क़ामत पे
शर्म हया का पैराहन या कह लो आँचल वो आँखें
उन की शोख़-निगाही के अफ़्सूँ का भी है क्या कहना
आलम सारा कर दे आबी बरखा, बादल वो आँखें
तीर-ए-मिज़्गाँ ऐसे कितने अहल-ए-दिल नख़चीर हुए
कितने बिखरे कितने तड़पे कलवल कलवल वो आँखें
©Parastish
अजमल- रूपवान,अत्यधिक सुंदर
गोया - मानो, जैसे । झाँकल- परिंदों का झुंड
मुश्ताक़ - शौक रखने वाला, अभिलाषी
रुपहली - चाँदी जैसी । क़ामत - शरीर
पैराहन - चोला, पोशाक। अफ़्सूँ- जादू
आबी - पानी का बना हुआ। मिज़्गाँ - पलकें
नख़चीर - शिकार । कलवल - मुसीबत, आपदा, बला
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