मुहब्बतों के खिलाड़ी लाजवंती सी है वो लजाई हुई स | हिंदी कविता

"मुहब्बतों के खिलाड़ी लाजवंती सी है वो लजाई हुई सुर्ख गालों पे लाली छायी हुई नयन शर्मा के गालों को हैं देखते तबस्सुम से रौनक है छायी हुई। लफ़्ज़ों ने कुछ ऐसा जादू किया मुहब्बत की कैद में फंसती गई पता जब चला देर हो गई बहुत मुहब्बत के टुकड़ों में मैं बंट गई। अम्मा अब्बू ने समझाया था बहुत पढ़ लिखकर भी जाहिलों में फंस गई मुहब्बत थी या फिर हवस जिस्म की अपने इरादों पर न मैं टिक सकी। स्वरचित ✍️ नरेशन्द्र"लक्ष्मी" फरीदाबाद हरियाणा ©Naresh Chandra"

 मुहब्बतों के खिलाड़ी

लाजवंती सी है वो लजाई हुई 
सुर्ख गालों पे लाली छायी हुई
नयन शर्मा के गालों को हैं देखते
तबस्सुम से रौनक है छायी हुई।

लफ़्ज़ों ने कुछ ऐसा जादू किया
मुहब्बत की कैद में फंसती गई 
पता जब चला देर हो गई बहुत
मुहब्बत के टुकड़ों में मैं बंट गई।

अम्मा अब्बू ने समझाया था बहुत
पढ़ लिखकर भी जाहिलों में फंस गई
मुहब्बत थी या फिर हवस जिस्म की
अपने इरादों पर न मैं टिक सकी।
स्वरचित ✍️
नरेशन्द्र"लक्ष्मी"
फरीदाबाद हरियाणा

©Naresh Chandra

मुहब्बतों के खिलाड़ी लाजवंती सी है वो लजाई हुई सुर्ख गालों पे लाली छायी हुई नयन शर्मा के गालों को हैं देखते तबस्सुम से रौनक है छायी हुई। लफ़्ज़ों ने कुछ ऐसा जादू किया मुहब्बत की कैद में फंसती गई पता जब चला देर हो गई बहुत मुहब्बत के टुकड़ों में मैं बंट गई। अम्मा अब्बू ने समझाया था बहुत पढ़ लिखकर भी जाहिलों में फंस गई मुहब्बत थी या फिर हवस जिस्म की अपने इरादों पर न मैं टिक सकी। स्वरचित ✍️ नरेशन्द्र"लक्ष्मी" फरीदाबाद हरियाणा ©Naresh Chandra

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