खुद को ही मुक़्क़मल कर लेते तो बेहतर होता आवारगी स | हिंदी शायरी

"खुद को ही मुक़्क़मल कर लेते तो बेहतर होता आवारगी से अच्छा तो कुदरत को निहारने का सफर होता ©Kamlesh Kandpal"

 खुद को ही मुक़्क़मल कर लेते 
तो बेहतर होता 
आवारगी से अच्छा तो कुदरत 
को निहारने का सफर होता

©Kamlesh Kandpal

खुद को ही मुक़्क़मल कर लेते तो बेहतर होता आवारगी से अच्छा तो कुदरत को निहारने का सफर होता ©Kamlesh Kandpal

#behtar

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