बेवजह कुछ होता, दफ्तर से लौटते हुए अक्सर।। ज़मीर | हिंदी शायरी

"बेवजह कुछ होता, दफ्तर से लौटते हुए अक्सर।। ज़मीर जिंदा है, भले कुछ नहीं हो हमारे अंदर।। हवाएं तेज हो तो, बांजुये मजबूत हमारी भी है।। फिर क्या खौफ चाहें सामने हो कोई समंदर। ©ravi parihar"

 बेवजह कुछ होता, दफ्तर से लौटते हुए अक्सर।। 
ज़मीर जिंदा है,  
भले कुछ नहीं हो हमारे अंदर।। 

हवाएं तेज हो तो, 
बांजुये मजबूत हमारी भी है।। 

फिर क्या खौफ चाहें सामने हो कोई समंदर।

©ravi parihar

बेवजह कुछ होता, दफ्तर से लौटते हुए अक्सर।। ज़मीर जिंदा है, भले कुछ नहीं हो हमारे अंदर।। हवाएं तेज हो तो, बांजुये मजबूत हमारी भी है।। फिर क्या खौफ चाहें सामने हो कोई समंदर। ©ravi parihar

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