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अधर चुप मगर बोलती आंँखें।
भेद कुछ मगर खोलती आंँखें।
चैन आए भला हमें कैसे-
वक्त-बे-वक्त तोलती आंँखें ।
चाँद उतरा बड़ा सलीके से -
चांँदनी खुद पसारती आंँखें।
जल उठी ज्यों कहीं शमां दिल में -
देख ली जब निहारती आंँखें।
रात ढलने लगी फिजाओं में -
चांँद पहलू उतारती आंँखें ।
चाहतें है लिए समंदर भी -
आप डूबा उबारती आंँखें।
डूबते हम रहे ‘उषा’ यूँ ही -
ख्वाब कितने संँवारती आँखें ।
©Dr Usha Kiran
#आंँखें...