जब अबला बला बन जाए,
तो मर्द को दर्द ही नहीं,
कई गहरे घाव दे जाती है।
चट्टान सा मज़बूत,
घर की छत,
सारी जिम्मेदारिओं
का बोझा ढोने वाला,
क्यों वही गुनहगार कहलाता,
हर सज़ा क्यों वह पाता।
मर्द के दर्द को भी,
समझा जाना चाहिए।
उनको भी न्याय चाहिए।
यह तो जरूरी नहीं
कि गुनाह में वो ही करे पहल,
कभी बेगुनाह हो,
भी सकता है सहगल।
©Neema Pawal
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