मेरे मुल्क की फिज़ा कुछ इस तरहां बदली देखने वालो क | हिंदी शायरी

"मेरे मुल्क की फिज़ा कुछ इस तरहां बदली देखने वालो की नज़र तो कीसी की सोच बदल गई राजनीति का गंदा खेल कुछ इस्तरहा खेला जो बोया था नफ़रत का बीज वो पेड़ बन गया जो दोस्त सिर्फ़ कहेनेको नही जो मेरे साथ होते थे कभी आज उनकी बातों में तेढा पन और आंखों मै नफ़रत देखी आज मुहब्बत पे फिर नफ़रत भारी पड़ गईं इंसानियत हार गईं और धर्म की राजनीति जीत गईं ©Shayar Rizwan"

 मेरे मुल्क की फिज़ा कुछ इस तरहां बदली
देखने वालो की नज़र
तो कीसी की सोच बदल गई 

राजनीति का गंदा खेल कुछ इस्तरहा खेला 
जो बोया था नफ़रत का बीज वो पेड़ बन गया

जो दोस्त सिर्फ़ कहेनेको नही
जो मेरे साथ होते थे कभी 
आज उनकी बातों में तेढा पन
और आंखों मै नफ़रत देखी 

आज मुहब्बत पे फिर नफ़रत भारी पड़ गईं
इंसानियत हार गईं और
धर्म की राजनीति जीत गईं

©Shayar Rizwan

मेरे मुल्क की फिज़ा कुछ इस तरहां बदली देखने वालो की नज़र तो कीसी की सोच बदल गई राजनीति का गंदा खेल कुछ इस्तरहा खेला जो बोया था नफ़रत का बीज वो पेड़ बन गया जो दोस्त सिर्फ़ कहेनेको नही जो मेरे साथ होते थे कभी आज उनकी बातों में तेढा पन और आंखों मै नफ़रत देखी आज मुहब्बत पे फिर नफ़रत भारी पड़ गईं इंसानियत हार गईं और धर्म की राजनीति जीत गईं ©Shayar Rizwan

मेरे मुल्क की फिज़ा

#Independence

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