ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है। पर | हिंदी लव

"ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है। पर तपीस तेरी आंखों की, सुकुन ढाने लगी है।। सोने लगा हूं मैं, अब नींद पूरी होने तक! जब से तू रोज ख्वाबों में, आने-जाने लगीं है।। ©KaviRaj bhatapara"

 ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है।
पर तपीस तेरी आंखों की, सुकुन ढाने लगी है।।
सोने लगा हूं मैं, अब नींद पूरी होने तक!
जब से तू रोज ख्वाबों में, आने-जाने लगीं है।।

©KaviRaj bhatapara

ये सितंबर की हवाएं, जिस्म को कंपकंपाने लगी है। पर तपीस तेरी आंखों की, सुकुन ढाने लगी है।। सोने लगा हूं मैं, अब नींद पूरी होने तक! जब से तू रोज ख्वाबों में, आने-जाने लगीं है।। ©KaviRaj bhatapara

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