White किसी पुरानी ग़ज़ल से उतर क्यों नहीं आती तुम,
मेरे अशआरों में सिमट क्यों नहीं जाती तुम।
हर अल्फ़ाज़ में तेरी तस्वीर बुनता हूँ,
फिर भी मेरे ख्वाबों में उतर क्यों नहीं आती तुम।
चांदनी रातों में तेरा ही अक्स ढूंढ़ता हूँ,
पर हर सवेरे धुंधली हो जाती हो तुम।
ये कैसा रिश्ता है, ये कैसी दूरी है,
मेरी नज़्मों के लफ्ज़ों में ठहर क्यों नहीं जाती तुम।
तुम्हारी खुशबू अब भी हवाओं में है,
पर वो पुरानी बातें, वो अदाएं कहाँ हैं।
किसी पुराने मिसरे की तरह मेरे दिल में बस जाओ,
पर हर शेर में अधूरी क्यूँ लगती हो तुम।
गुज़रा वक़्त, और गुज़री रातों का हिसाब,
तेरी मौजूदगी में कहीं छूट जाता है।
किसी पुरानी ग़ज़ल से निकलकर मेरे पास आओ,
कि मेरे अरमानों से सजा क्यों नहीं जाती तुम।
©UNCLE彡RAVAN
#Couple