कभी आकर तो देखो,
तुम्हारे दिए शब्द..
मेरे सामने कैसे और..
किस तरह इठलाती हैं।
मेरे सामने नाचती हैं,
झुमती हैं और.....
मन्द-मन्द मुस्कुराती हैं।
तुम्हारा जिस्म और वो सांसें,
तुम्हें दूर से छूकर,
कविता में तुम्हारे शब्दों में,
निस्तेज होकर..
मेरे पन्नों पर लेट जाती हैं
जैसे पूछती हों ?
क्या तुम मुझे भूल गए हो ?
-राजीव.
©Rajiv