White कल ख्वाब में देखा पानी को। बूँद-बूँद थी ठहर- | हिंदी कविता

"White कल ख्वाब में देखा पानी को। बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर। रुके-रुके, बादल-बादल। नदियाँ सारी झील-झील। स्थिर हुए निर्झर-निर्झर। जल की अस्थिरता खत्म हुई वेगहीन हुई धाराएं, उद्गमित होने लगी धारणाएं। यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है? जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं? प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते। फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज""

 White कल ख्वाब में देखा पानी को।
बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर।
रुके-रुके, बादल-बादल।
नदियाँ सारी झील-झील।
स्थिर हुए निर्झर-निर्झर।
जल की अस्थिरता खत्म हुई
वेगहीन हुई धाराएं,
उद्गमित होने लगी धारणाएं।
यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है?
जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं?
प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते।
फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"।

©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

White कल ख्वाब में देखा पानी को। बूँद-बूँद थी ठहर-ठहर। रुके-रुके, बादल-बादल। नदियाँ सारी झील-झील। स्थिर हुए निर्झर-निर्झर। जल की अस्थिरता खत्म हुई वेगहीन हुई धाराएं, उद्गमित होने लगी धारणाएं। यक्ष प्रश्न : जल तंत्र स्थिर क्यों है? जनतंत्र अस्थिर क्यों हैं? प्रत्युत्तर दे रहे थे फरिश्ते। फ़रिश्ते: "रिश रिश के रिश रहे हैं रिश्ते"। ©ऋतुराज पपनै "क्षितिज"

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