बंद करो किसी इंसान को ये बोलना की धंमड़ के कारण वो | हिंदी Poetry

"बंद करो किसी इंसान को ये बोलना की धंमड़ के कारण वो अकेला हैं या उसका ये हाल हैं समाज भी पूरी तरह उसके इस हाल का कसूरवार हैं हर इंसान इस संसार में अमूल्य हैं बराबर जीने का उसे अधिकार हैं उसे कटू वचन का जहर मत पी लाओ जुबां से ना सही अपनी हरकतों से उसे जीवन से बेसार ना करों जो कभी सफल ही ना था क्या पता घमंड क्या हैं जब सब एक जैसे नहीं तो कैसे ये सोच लिया तुमने जो तुम्हारे लिए अनुकूल हैं वो उसके लिए भी हो परिस्थिति जब प्रकृति बनाती हैं सबको सबक सिखाती हैं लेकिन इंसान केवल अपने लिए रास्ता बनाता हैं जो किसी अपने की बर्बादी पर ही बनता हैं ©नीर"

 बंद करो किसी इंसान को ये बोलना की
धंमड़ के कारण वो अकेला हैं
या उसका ये हाल हैं
समाज भी पूरी तरह उसके इस हाल का
कसूरवार हैं
हर इंसान इस संसार में अमूल्य हैं
बराबर जीने का उसे अधिकार हैं
उसे कटू वचन का जहर मत पी लाओ
जुबां से ना सही अपनी हरकतों
से उसे जीवन से बेसार ना करों
जो कभी सफल ही ना था
क्या पता घमंड क्या हैं
जब सब एक जैसे नहीं
तो कैसे ये सोच लिया तुमने
जो तुम्हारे लिए अनुकूल हैं
वो उसके लिए भी हो
परिस्थिति जब प्रकृति बनाती हैं
सबको सबक सिखाती हैं
लेकिन इंसान केवल अपने लिए
रास्ता बनाता हैं  जो किसी अपने
की बर्बादी पर ही बनता हैं

©नीर

बंद करो किसी इंसान को ये बोलना की धंमड़ के कारण वो अकेला हैं या उसका ये हाल हैं समाज भी पूरी तरह उसके इस हाल का कसूरवार हैं हर इंसान इस संसार में अमूल्य हैं बराबर जीने का उसे अधिकार हैं उसे कटू वचन का जहर मत पी लाओ जुबां से ना सही अपनी हरकतों से उसे जीवन से बेसार ना करों जो कभी सफल ही ना था क्या पता घमंड क्या हैं जब सब एक जैसे नहीं तो कैसे ये सोच लिया तुमने जो तुम्हारे लिए अनुकूल हैं वो उसके लिए भी हो परिस्थिति जब प्रकृति बनाती हैं सबको सबक सिखाती हैं लेकिन इंसान केवल अपने लिए रास्ता बनाता हैं जो किसी अपने की बर्बादी पर ही बनता हैं ©नीर

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