White **टाइम ट्रैवल - भाग 1**
मुंबई की हल्की बारिश में, 24 साल का राघव अपनी कार चला रहा था। वह गुस्से में था, उसकी आवाज़ में कसमसाहट साफ झलक रही थी। फ़ोन पर अपने चाचा से बात करते हुए वह बोला, "आपको पता है ना, चाचाजी? जब तक माँ और पापा के कातिलों का पता नहीं लगाता, तब तक चैन से नहीं रहूँगा। शादी-विवाह तो बहुत दूर की बात है।"
दूसरी तरफ, प्रोफेसर कृष्ण शास्त्री अपनी बोरीवली की लैब में व्यस्त थे। वे एक ऐसी कार पर काम कर रहे थे, जो बाहर से देखने में आम कार जैसी थी, लेकिन अंदर उसकी खासियत थी टाइम ट्रैवल। कई सालों की मेहनत से उन्होंने इस कार को तैयार किया था, लेकिन किसी को इसकी खबर नहीं थी, सिवाय कुछ गिने-चुने लोगों के।
इसी बीच, एक और जगह पर कहानी घुमती है। डोंगरी के एक चीनी गुंडे, विकी भाई के पास फोन आता है। दूसरी तरफ से ऑस्ट्रेलिया से अरुण सिन्हा नामक एक शख्स बात कर रहा था। "विकी, सुना है तेरे इलाके में एक प्रोफेसर है, कृष्ण शास्त्री, जिसने टाइम ट्रैवल करने वाली मशीन बनाई है। मुझे वो मशीन चाहिए। अगर तू उसे मेरे पास पहुंचा देगा, तो मैं तुझे 5 करोड़ दूंगा। मैं तुझे डिटेल्स व्हाट्सएप कर रहा हूँ। तु जल्दी काम कर!" अरुण ने ये कहकर फोन काट दिया और अपनी कुर्सी पर आराम से बैठते हुए एक तस्वीर उठाई। उसने तस्वीर को देखकर एक अजीब सी मुस्कान दी और बोला, "आ रहा हूँ तुम्हें बचाने और मुंबई पर राज करने।"
विकी भाई प्रोफेसर कृष्ण शास्त्री को फोन लगाता है। टपोरी भाषा में बोलते हुए कहता है, "सुन बे शास्त्री, मेरे को पता चला है तेरे पास कोई मशीन-वशीन है। मेरे आदमी आ रहे हैं, वो मशीन चुपचाप दे देना, वरना तू मारा जाएगा। समझा क्या?"
प्रोफेसर शास्त्री, जो अपनी लैब में काम कर रहे थे, अचानक फोन की आवाज़ से चौंके। बिना नंबर देखे ही उन्होंने फोन उठा लिया, और कुछ बोलने से पहले ही विकी भाई की धमकी भरी आवाज़ सुनाई दी।
प्रोफेसर कृष्ण शास्त्री कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गए। विकी भाई की धमकी से उनकी भौंहें सिकुड़ गईं, लेकिन उन्होंने अपने आपको संयत रखते हुए कहा, "देखो, मैं किसी गलत काम में शामिल नहीं होता। ये जो तुम सुन रहे हो, सब अफवाह है। मेरे पास ऐसी कोई मशीन नहीं है।"
विकी भाई ने ठहाका लगाते हुए कहा, "अफवाह-वफवाह छोड़, मेरे को सब पता है। तेरे लैब में जो कार है ना, वो टाइम ट्रैवल करती है। मेरे आदमी बस पहुंचने ही वाले हैं। समझा? अगर मशीन नहीं मिली, तो तेरे लिए अच्छा नहीं होगा!"
प्रोफेसर ने फोन काट दिया, पर उनके माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिख रही थीं। उन्होंने अपनी लैब के चारों ओर नजर दौड़ाई। ये उनकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खोज थी, लेकिन अब ये खोज उनके लिए खतरा बनती जा रही थी।
दूसरी ओर, राघव अपनी कार के भीतर गहरी सोच में डूबा था। उसे पता था कि उसके माता-पिता के कातिलों का सुराग किसी हाई-प्रोफाइल गैंगस्टर से जुड़ा हुआ था, लेकिन अब तक वह इसका पता नहीं लगा पाया था। अचानक, उसके फोन पर एक नोटिफिकेशन आया—किसी अनजान नंबर से एक संदेश। संदेश में लिखा था, "अगर सच्चाई जाननी है, तो प्रोफेसर कृष्ण शास्त्री से मिल।"
©Aditya Vardhan Gandhi
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