**विकसित भारत के रोड़े**
विकसित भारत की राह में, कितने रोड़े बिछे पड़े,
सपनों को समेटे हम चले, पर कांटे हर कदम गड़े।
आशाओं की लौ जलती है, पर भ्रष्टाचार की आँधियाँ,
उस रोशनी को बुझाती हैं, रख देती हैं राह में कंदीलें धुंधली सी।
बेरोजगारी की सलाखें, बुनती हैं एक जाल,
शिक्षा की कमी भी, घेर लेती है हर सवाल।
जाति-धर्म के बंधन, फिर भी कसते हैं हमें,
प्रगति की दौड़ में हम, बस आपस में उलझते हैं।
बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, विकास के नारे बुलंद,
पर जमीनी हकीकत में, सपनों का टूटता है गठबंध।
आओ मिलकर संकल्प करें, इन रोड़ों को हटाने का,
एकता, ईमानदारी, शिक्षा से, विकसित भारत बनाने का।
©Amrendra Kumar Thakur
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