कहीं से निकले हैं,
तो कहीं पहुँच जाने का इंतज़ार।
कभी किसी नये दिन का,
तो कभी ....
बस इस रात के गुज़र जाने का इंतज़ार।
किसी के किस्सों में,
तो किसी की लकीरों में
बस जाने का इंतज़ार।
किसी के ख़्वाबों में,
तो किसी के सजदों में
बस ज़िंदा रहने का इंतज़ार।
ऐसे देखा जाय....
तो ज़िन्दगी इंतेज़ार ही तो है।
हर गुज़रे पल को इंतेज़ार है...
आने वाले का।
इस ज़िन्दगी को इंतेज़ार है....
"ज़िन्दगी" का।
शायद इसलिए,
ज़िन्दगी...." सफर" है।
और ये सफर....
बेअंजाम, बेमंज़िल ही सही,
खूबसूरत है।
©Dr Jyotirmayee Patel