(एक टुकड़ा आसमान का) हैं जमीन पर एक टुकड़ा आसमान | हिंदी कविता

"(एक टुकड़ा आसमान का) हैं जमीन पर एक टुकड़ा आसमान का, जो कुछ पड़ता हैं, कुछ लिखता हैं । जो कुछ पाता हैं, कुछ खोता हैं, जो कभी हंसता हैं, तो कभी रोता हैं ।। जो कभी कहकर भी नहीं कह पाता हैं, जो सदा अपनों में ही मुस्कराता हैं । हैं एक टुकड़ा आसमान का, जो अपनों को भूल नहीं पाता हैं ।। ©kumar Badri"

 (एक टुकड़ा आसमान का)

हैं जमीन पर एक टुकड़ा आसमान का,
जो कुछ पड़ता हैं,  कुछ लिखता हैं ।
जो कुछ पाता हैं, कुछ खोता हैं,
जो कभी हंसता हैं, तो कभी रोता हैं ।।

जो कभी कहकर भी नहीं कह पाता हैं,
जो सदा अपनों में ही मुस्कराता हैं ।
हैं एक टुकड़ा आसमान का,
जो अपनों को भूल नहीं पाता हैं ।।

©kumar Badri

(एक टुकड़ा आसमान का) हैं जमीन पर एक टुकड़ा आसमान का, जो कुछ पड़ता हैं, कुछ लिखता हैं । जो कुछ पाता हैं, कुछ खोता हैं, जो कभी हंसता हैं, तो कभी रोता हैं ।। जो कभी कहकर भी नहीं कह पाता हैं, जो सदा अपनों में ही मुस्कराता हैं । हैं एक टुकड़ा आसमान का, जो अपनों को भूल नहीं पाता हैं ।। ©kumar Badri

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