" ज़िम्मेदारियाँ तो बहुत है मुझ पर मगर मैं समझता कहाँ हूँ !!
चाहिए तो मुझे भी हद में रहना मगर मैं भी रहता कहाँ हूँ !!
पहले सोचता था कि ठोकर ही मुझको चलना सीखा देगी, पर
मन इतना ज़िद्दी ही कि ठोकर के बाद भी संभलता कहाँ हूँ !!
©कुन्दन " प्रीत " ( کندن )
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