बारिश
डूब सा जाऊँ ख़्यालों में तेरे,
तू समायी जो है, हर रोम में मेरे.....
देख तेरी याद मुझे सताती है,
जब-जब बारिश आती है...
भींगी सी तू, भींगी तेरी जुल्फें,
तेरे सीने से चिपकी नज़र आ जाती है,
बदन में आग लगाती है...
जब-जब बारिश आती है....
बूंदे तेरे देह को, चूम-चूम मुस्काती है,
मोतियों सी नज़र आती है,
मुझे हीं जला जाती है,
जब-जब बारिश आती है...
याद है वो बारिश.....
मस्ती थी छायी, आग थी लगायी....
अधरों से तूने मेरे अधरों को छूकर,
प्रेमरस थी बरसाई...
लिपटकर बदन से, मुझमें हीं खो गयी थी,
प्रेम स्वरूप गीत सुनाकर, गोद में सो गयी थी...
आज भी वो पल, एक मुस्कान सी दे जाती है,
बीते लम्हे साथ तेरे, याद मुझे आ जाती है,
जब-जब बारिश आती है.....
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©अपनी कलम से
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