White उफ़! वो भीगी पलकें उसकी,
जिन्हे मैं आँखें बुझाए देखता हूँ;
मैं देखता हूँ उसके भीगे केश भी,
सब; लोगों से छिपाए देखता हूँ।
मेरी निगाहें उसके होठों पर जाती हैं,
मैं उनमें जीवन का सौन्दर्य देखता हूँ;
मैं निहारता हूँ उसके मटमैले चेहरे को भी,
मैं उसमे मिट्टी सा धैर्य देखता हूँ।
मैंने बंद किए सभी खिड़की - दरवाज़े,
उसकी वो धीमी गुफ्तगू सुनने के लिए;
आधे अँधेरे में, सभी पंखे तक बुझाए,
उसके श्वास की खुशबू सूँघने के लिए।
मैं कान बढ़ाता हूँ उसके हृदय की ओर,
मुझे लगा, ये मेरी जुस्तजू का अंत है;
फिर पर्दा उठता है, और अँधेरा अदृश्य,
कल्पित ये मेरी गुफ्तगू का अंत है।
©Deepanshu
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