"भूल गए तुम क्या कुर्बानी, वतन के उन दीवानों की।
देशहित में लड़े अन्त तक, आहुति दे निज प्राणों की।।
तिरंगे की शान की खातिर,था सर्वस्व लुटाया वीरों ने।
सीने पर थी गोली खाई,चाहे स्वयं बंधे रहे जंज़ीरों में।।
(पूर्णतः स्वरचित, सुरक्षित और मौलिक)
नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार
©Niraj Srivastava
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