ग़ज़ल (खयाल)
उलझनों में भी जिंदगी तेरा खयाल रहा,
यूं मिला तू के मिलने का मलाल रहा।
किस खता की सजा पाई हमने ,
ज़िंदगी से अपना ये सवाल रहा।
राह आसां उल्फत की नहीं हम जानते थे,
हर कदम बेरुखी का तेरे उड़ता गुलाल रहा।
राहतें और ना थीं एक तेरे सिवा,
तेरा बिछड़ना भी एक मिसाल रहा।
हुए ना तुम हमारे लाख मनाने से,
वक्त का सितम भी कमाल रहा।
©Dr.Javed khan
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