गुरूर बहुत था काफिरों को अपनी बंदूकों पर,
हमारी केसरिया तलवारों ने उनका हर गुरूर मिटाया है;
सर उठे जो खिलाफ हिंद के ,हर वो सर हमने धड़ से हटाया है,
और ये हरे चांद के पनाहगारों आज ये याद रखें,
की जिन लश्करों के बूते उड़ रहे हैं,
ऐसी कई तमाम लश्करों को इस सरजमीं ने अपने सीने में दफनाया है।।
©Ravi Samrat
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