पक्ष एक बीता पक्ष एक छूटा,
तुम्हारी याद मैं कक्ष कभी न छूटा
निगाहों से पर्याय बनाकर कहा मैंने
ढूंढ कर ला दो सामने वह मीत मेरा
पकड़ा जो हाथ तूने वो साथ भी छूटा
था जन्मान्तरों तक साथ निभाने का वादा
पकड़कर हाथ में पूछूं फिर साथ क्यों छूटा
इशारों में कह कर चल दिए आता हूं तेरे पास
सपनों में भी न आए तुम बनकर मेरे खास
एक पक्ष बीता और एक पक्ष छोटा
फिर भी याद तुम्हारी में कक्ष कभी न छूटा।
राज की बात
©Rajesh kumar shastri
राज की बात