Unsplash ्रचना दिनांक 24,,12,,2024 व | हिंदी मोटिवेशनल

"Unsplash ्रचना दिनांक 24,,12,,2024 वार मंगलवार समय दोपहर ग्यारह बजे भावचित्र ् ्निज विचार ् ््शीर्षक ््् मनुष्य मनुज देह में प्राचीन अर्वाचीन काल से शिक्षा दीक्षा संस्कार कर्म है,, भारत भूमि महान है देव अर्चनंमाधवं गोविंदं श्रीकृष्णं पितृ तर्पण अर्पण समर्पण भाव वंशानुगत देवत्व नहीं है, यज्ञोपवीत संस्कार विधान में विश्वास रखते हुए जीवन में मनुष्य मनुज देह पर धारण करने का माद्दा रखने की ताकत और विधान है।। मां गायत्रीका अनुष्ठान है,, जो महर्षि विश्वामित्र जी के व्दारा सशरीर मृत्यु लोक से मानव को अपने सर्वस्व धर्म कर्म से स्वर्ग लोक में भेजने का दूस्साहस भी इन्सानी मानस से महर्षि विश्वामित्र जी ने ही किया था।। इस महत्ती भूमिका में नजर आएंगे कथा और कथानक और मनुष्य के कर्म भूमि वर्चस्व कायम का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम नहीं संस्कार परिवार कूल वंश कर्म से ही मिलता है। जब सशरीर मृत्यु के बिना जीवित पहुंचता है तो उसका विरोध कोई ओर नही देवता और अवतार से प्राकट्य देवो देव में विरोधाभास और संघर्ष के पश्चात उस मनुष्य राजन् को स्वर्गलोक से मृत्युलोक की ओर फेंका गया है, तब महर्षि विश्वामित्र जी ने तीसरे लोक का सृजन का संकल्प लिया और नयी सृष्टि सजृन का निर्माण कार्य करने वाले को राह दिखाने का आयना मजमा लगाकर देव,दानव, के पश्चात अलग सृष्टि में नारि फल प्राप्त नारियल पानी में मानवीय सरोकार सृजन का स्वप्न साकार लोक में लाया गया है, उनके अनुसार प्रयोग प्रयास से हड़कंप मच गया था संसार जगत में। तब महर्षि विश्वामित्र जी ने मां गायत्री मंत्र शक्ति दिव्यता सृजन और यज्ञोपवीत संस्कार का सृजनात्मक शक्ति दिव्यता प्रदान करने का विधान बनाया गया था।। इसके विधान और नियम निम्नानुसार है ्् यह कार्यक्रम में मृत्यु लोक में मनुष्य मनुज को अपने व्यक्तिगत रूप से जीवन व्यतीत करने में मदद मिलेगी स्थिति अनुरूप कामकाज वातावरण के अनुसार दर्शन यज्ञोपवीत संस्कार को , उपनयन संस्कार भी कहा जाता है जो बाल्यावस्था में ही शिक्षा दीक्षा संस्कार शिक्षण संस्थान गुरुकुल में अध्ययन रत विद्यार्थियों को उपनयन संस्कार किया जाता रहा है जिसमें वेद वेदान्त दर्शन और कर्मकांड पूजन सनातन विचार सच का सबक सिखाना जाता था, और आगे बढ़ कर जप तप नेम नियम और शर्तें गोपनीयता गुरु गुरुवर्य आराध्यमं पुज्यं बृहस्पति श्रद्धा से सम्मान जरुरी है।। इसमें साधक साधना प्रकृति से प्रेम करने वाले ब़म्हकर्मसाक्ष्य श्रीविश्वामित्र अतुलतेजस्वी है तो खाधान्न अन्न सादा भोजन तामसिक भोजन का परित्याग करना ही रहता था। यह कार्यक्रम लगातार वर्णाश्रम व्यवस्था में अपने कर्म निज आचार विचार पर स्वैच्छिक रूप से जीवन व्यतीत करने वाले को अपने जातीय निजी कार्यक्षेत्र अनुसार समयसाधना से सजाया गया है। नियम अनुसार इस कार्य में आश्रम में मानसिक रूप से सजग हो और उपनयन संस्कार में साधक साधना में जप मंत्र का अभ्यास करना ही जरूरी है। 1, त्रिकाल संध्या करना 2 भिक्षाटन करना 3 घरपर से भिक्षा लाना और अपने गुरु गुरुवर्य और स्वयं विधी से भौज्य बनाना और अपने ईश्वर और गुरु की सेवा में तत्पर रहते हुए जीवन सफल बनाएं। 3, सभी धर्मों में सत्य और अहिंसा परमो धर्म, और शस्त्र,शास्त्र,ज्ञान, रस, निर्बल को आश्रय देना, 4,धर्मश्रंखला में धर्मसंसद में शास्त्रार्थ करना भी जरूरी होता है.। 5, गृहस्थ आश्रम, और वानप्रस्थ संस्कार और परम्पराओं में 6,संन्यास आश्रम में स्वयं विधी सम्मत अपना स्वयं का मृतक कर्म भूमि पर करके सिर्फ त्वमेव सिर्फ मानवता पर जिंदगी बिताने वाले आत्ममंथन करना ही जिंदगी है।। 6, तथाकथित लोगों से समाज सभ्यता संस्कृति और इतिहास पुराण कथा साहित्य कोष संजीवनी लक्ष बूटी है। 7,लेकिन सूखद परिणाम कुल घोषित न्याय पाओ मर्यादा में रहकर जीवन में आस्था रखने वाले अच्छे लगते है। 8, यही मानव धर्म कर्म अर्थ है जो धरती पर साकार लोक में सत्य है, जो हवा के समान है श्रुति स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित जीवन है। 9,यही जीवन जन्म कुंडली कर्म का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया चित्र गुप्त रूप में स्वर्ग नरक का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम और बिछोह विश्वास है। ,,यज्ञोपवीत संस्कार है क्या है माजरा दुध का दुध पानी का पानी होना चाहिये।। ‌। कवि शैलेंद्र आनंद ©Shailendra Anand"

 Unsplash               ्रचना दिनांक 24,,12,,2024
वार  मंगलवार
समय दोपहर ग्यारह बजे
भावचित्र ्
               ्निज विचार ्
                   ््शीर्षक ्््
             मनुष्य मनुज देह में प्राचीन अर्वाचीन काल से शिक्षा दीक्षा संस्कार कर्म है,,
भारत भूमि महान है देव अर्चनंमाधवं गोविंदं श्रीकृष्णं पितृ तर्पण अर्पण समर्पण भाव वंशानुगत देवत्व नहीं है,
यज्ञोपवीत संस्कार विधान में विश्वास रखते हुए जीवन में मनुष्य मनुज देह पर धारण करने का माद्दा रखने की ताकत और विधान है।।
मां गायत्रीका अनुष्ठान है,,
 जो महर्षि विश्वामित्र जी के व्दारा सशरीर मृत्यु लोक से मानव को अपने सर्वस्व धर्म कर्म से स्वर्ग लोक में भेजने का दूस्साहस भी इन्सानी मानस से महर्षि विश्वामित्र जी ने ही किया था।।
इस महत्ती भूमिका में नजर आएंगे कथा और कथानक और मनुष्य के कर्म भूमि वर्चस्व कायम का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम नहीं संस्कार परिवार कूल वंश कर्म से ही मिलता है।
जब सशरीर मृत्यु के बिना जीवित पहुंचता है तो उसका विरोध कोई ओर नही देवता और अवतार से प्राकट्य देवो देव में विरोधाभास और संघर्ष के पश्चात उस मनुष्य राजन् को स्वर्गलोक से मृत्युलोक की ओर फेंका गया है,
तब महर्षि विश्वामित्र जी ने तीसरे लोक का सृजन का संकल्प लिया और नयी सृष्टि सजृन का निर्माण कार्य करने वाले को राह दिखाने का आयना मजमा लगाकर देव,दानव, के पश्चात अलग सृष्टि में नारि फल प्राप्त नारियल पानी में मानवीय सरोकार सृजन का स्वप्न साकार लोक में लाया गया है,
उनके अनुसार प्रयोग प्रयास से हड़कंप मच गया था संसार जगत में।
तब महर्षि विश्वामित्र जी ने मां गायत्री मंत्र शक्ति दिव्यता सृजन और यज्ञोपवीत संस्कार का सृजनात्मक शक्ति दिव्यता प्रदान करने का विधान बनाया गया था।।
इसके विधान और नियम निम्नानुसार है ््
यह कार्यक्रम में मृत्यु लोक में मनुष्य मनुज को अपने व्यक्तिगत रूप से जीवन व्यतीत करने में मदद मिलेगी स्थिति अनुरूप कामकाज वातावरण के अनुसार दर्शन यज्ञोपवीत संस्कार को ,
उपनयन संस्कार भी कहा जाता है जो बाल्यावस्था में ही शिक्षा दीक्षा संस्कार शिक्षण संस्थान गुरुकुल में अध्ययन रत विद्यार्थियों को उपनयन संस्कार किया जाता रहा है जिसमें वेद वेदान्त दर्शन और कर्मकांड पूजन सनातन विचार सच का सबक सिखाना जाता था,
और आगे बढ़ कर जप तप नेम नियम और शर्तें गोपनीयता गुरु गुरुवर्य आराध्यमं पुज्यं बृहस्पति श्रद्धा से सम्मान जरुरी है।।
इसमें साधक साधना प्रकृति से प्रेम करने वाले ब़म्हकर्मसाक्ष्य श्रीविश्वामित्र अतुलतेजस्वी है तो खाधान्न अन्न सादा भोजन तामसिक भोजन का परित्याग करना ही रहता था।
यह कार्यक्रम लगातार वर्णाश्रम व्यवस्था में अपने कर्म निज आचार विचार पर स्वैच्छिक रूप से जीवन व्यतीत करने वाले को अपने जातीय निजी कार्यक्षेत्र अनुसार समयसाधना से सजाया गया है। नियम अनुसार इस कार्य में आश्रम में मानसिक रूप से सजग हो और उपनयन संस्कार में साधक साधना में जप मंत्र का अभ्यास करना ही जरूरी है।
1, त्रिकाल संध्या करना
2 भिक्षाटन करना 3 घरपर से भिक्षा लाना और अपने गुरु गुरुवर्य और स्वयं विधी से भौज्य बनाना और अपने ईश्वर और गुरु की सेवा में तत्पर रहते हुए जीवन सफल बनाएं।
3, सभी धर्मों में सत्य और अहिंसा परमो धर्म,
और शस्त्र,शास्त्र,ज्ञान, रस, निर्बल को आश्रय देना, 
4,धर्मश्रंखला में धर्मसंसद में शास्त्रार्थ करना भी जरूरी होता है.।
5, गृहस्थ आश्रम, और वानप्रस्थ संस्कार और परम्पराओं में
6,संन्यास आश्रम में स्वयं विधी सम्मत अपना स्वयं का मृतक कर्म भूमि पर करके सिर्फ त्वमेव सिर्फ मानवता पर जिंदगी बिताने वाले आत्ममंथन करना ही जिंदगी है।।
6, तथाकथित लोगों से समाज सभ्यता संस्कृति और इतिहास पुराण कथा साहित्य कोष संजीवनी लक्ष बूटी है।
7,लेकिन सूखद परिणाम कुल घोषित न्याय पाओ मर्यादा में रहकर जीवन में आस्था रखने वाले अच्छे लगते है।
8, यही मानव धर्म कर्म अर्थ है जो धरती पर साकार लोक में सत्य है, जो हवा के समान है श्रुति स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित जीवन है।
9,यही जीवन जन्म कुंडली कर्म का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया चित्र गुप्त रूप में स्वर्ग नरक का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम और बिछोह विश्वास है।
,,यज्ञोपवीत संस्कार है क्या है माजरा दुध का दुध पानी का पानी होना चाहिये।।
       ‌।     कवि शैलेंद्र आनंद

©Shailendra Anand

Unsplash ्रचना दिनांक 24,,12,,2024 वार मंगलवार समय दोपहर ग्यारह बजे भावचित्र ् ्निज विचार ् ््शीर्षक ््् मनुष्य मनुज देह में प्राचीन अर्वाचीन काल से शिक्षा दीक्षा संस्कार कर्म है,, भारत भूमि महान है देव अर्चनंमाधवं गोविंदं श्रीकृष्णं पितृ तर्पण अर्पण समर्पण भाव वंशानुगत देवत्व नहीं है, यज्ञोपवीत संस्कार विधान में विश्वास रखते हुए जीवन में मनुष्य मनुज देह पर धारण करने का माद्दा रखने की ताकत और विधान है।। मां गायत्रीका अनुष्ठान है,, जो महर्षि विश्वामित्र जी के व्दारा सशरीर मृत्यु लोक से मानव को अपने सर्वस्व धर्म कर्म से स्वर्ग लोक में भेजने का दूस्साहस भी इन्सानी मानस से महर्षि विश्वामित्र जी ने ही किया था।। इस महत्ती भूमिका में नजर आएंगे कथा और कथानक और मनुष्य के कर्म भूमि वर्चस्व कायम का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम नहीं संस्कार परिवार कूल वंश कर्म से ही मिलता है। जब सशरीर मृत्यु के बिना जीवित पहुंचता है तो उसका विरोध कोई ओर नही देवता और अवतार से प्राकट्य देवो देव में विरोधाभास और संघर्ष के पश्चात उस मनुष्य राजन् को स्वर्गलोक से मृत्युलोक की ओर फेंका गया है, तब महर्षि विश्वामित्र जी ने तीसरे लोक का सृजन का संकल्प लिया और नयी सृष्टि सजृन का निर्माण कार्य करने वाले को राह दिखाने का आयना मजमा लगाकर देव,दानव, के पश्चात अलग सृष्टि में नारि फल प्राप्त नारियल पानी में मानवीय सरोकार सृजन का स्वप्न साकार लोक में लाया गया है, उनके अनुसार प्रयोग प्रयास से हड़कंप मच गया था संसार जगत में। तब महर्षि विश्वामित्र जी ने मां गायत्री मंत्र शक्ति दिव्यता सृजन और यज्ञोपवीत संस्कार का सृजनात्मक शक्ति दिव्यता प्रदान करने का विधान बनाया गया था।। इसके विधान और नियम निम्नानुसार है ्् यह कार्यक्रम में मृत्यु लोक में मनुष्य मनुज को अपने व्यक्तिगत रूप से जीवन व्यतीत करने में मदद मिलेगी स्थिति अनुरूप कामकाज वातावरण के अनुसार दर्शन यज्ञोपवीत संस्कार को , उपनयन संस्कार भी कहा जाता है जो बाल्यावस्था में ही शिक्षा दीक्षा संस्कार शिक्षण संस्थान गुरुकुल में अध्ययन रत विद्यार्थियों को उपनयन संस्कार किया जाता रहा है जिसमें वेद वेदान्त दर्शन और कर्मकांड पूजन सनातन विचार सच का सबक सिखाना जाता था, और आगे बढ़ कर जप तप नेम नियम और शर्तें गोपनीयता गुरु गुरुवर्य आराध्यमं पुज्यं बृहस्पति श्रद्धा से सम्मान जरुरी है।। इसमें साधक साधना प्रकृति से प्रेम करने वाले ब़म्हकर्मसाक्ष्य श्रीविश्वामित्र अतुलतेजस्वी है तो खाधान्न अन्न सादा भोजन तामसिक भोजन का परित्याग करना ही रहता था। यह कार्यक्रम लगातार वर्णाश्रम व्यवस्था में अपने कर्म निज आचार विचार पर स्वैच्छिक रूप से जीवन व्यतीत करने वाले को अपने जातीय निजी कार्यक्षेत्र अनुसार समयसाधना से सजाया गया है। नियम अनुसार इस कार्य में आश्रम में मानसिक रूप से सजग हो और उपनयन संस्कार में साधक साधना में जप मंत्र का अभ्यास करना ही जरूरी है। 1, त्रिकाल संध्या करना 2 भिक्षाटन करना 3 घरपर से भिक्षा लाना और अपने गुरु गुरुवर्य और स्वयं विधी से भौज्य बनाना और अपने ईश्वर और गुरु की सेवा में तत्पर रहते हुए जीवन सफल बनाएं। 3, सभी धर्मों में सत्य और अहिंसा परमो धर्म, और शस्त्र,शास्त्र,ज्ञान, रस, निर्बल को आश्रय देना, 4,धर्मश्रंखला में धर्मसंसद में शास्त्रार्थ करना भी जरूरी होता है.। 5, गृहस्थ आश्रम, और वानप्रस्थ संस्कार और परम्पराओं में 6,संन्यास आश्रम में स्वयं विधी सम्मत अपना स्वयं का मृतक कर्म भूमि पर करके सिर्फ त्वमेव सिर्फ मानवता पर जिंदगी बिताने वाले आत्ममंथन करना ही जिंदगी है।। 6, तथाकथित लोगों से समाज सभ्यता संस्कृति और इतिहास पुराण कथा साहित्य कोष संजीवनी लक्ष बूटी है। 7,लेकिन सूखद परिणाम कुल घोषित न्याय पाओ मर्यादा में रहकर जीवन में आस्था रखने वाले अच्छे लगते है। 8, यही मानव धर्म कर्म अर्थ है जो धरती पर साकार लोक में सत्य है, जो हवा के समान है श्रुति स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित जीवन है। 9,यही जीवन जन्म कुंडली कर्म का लेखा जोखा प्रस्तुत किया गया चित्र गुप्त रूप में स्वर्ग नरक का आयना नज़रिया सहज महज़ प्रेम और बिछोह विश्वास है। ,,यज्ञोपवीत संस्कार है क्या है माजरा दुध का दुध पानी का पानी होना चाहिये।। ‌। कवि शैलेंद्र आनंद ©Shailendra Anand

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कवि शैलेंद्र आनंद

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