हो सकता है
स्वप्न-जगत को ज़्यादा ज़रूरत होगी
तुम्हारी कविताओं की।
शायद वहाँ
कोई बच्चा कर रहा होगा इंतज़ार
तुम्हारी कविताओं का
स्कूल से भागकर
पटरी किनारे
कमर पर हाथ धरे।
(अनुशीर्षक पढ़ें)
©Kumar Divyanshu Shekhar
(१)
कुछ कविताएँ नींद में बुनी जाती हैं।
उनका अस्तित्व आँखों के सोए रहने में है।
उनकी पूर्णता
हमारी सतही दुनिया से निरपेक्ष
सपनों की दुनिया में बने रहने में है
तभी तो आँखों के खुलते ही
भाप हो जाती हैं वो