धन्य थी वो माँ
जिसने जणा ऐसा लाल,
मेवाड़ की रक्षक थे
वो महाराणा प्रताप।
अकबर के साथ मिल मानसिंह
चला प्रताप को झुकाने को,
पर डर किसका महाराणा को
भिड़े स्वाभिमान बचाने को।
गोगुंदा में जन्म लिया
जीता फिर मेवाड़ को,
अद्वितीय साहस दिखाया उनके
साथ के भील सरदारों नें।
कौन भूलेगा
मानसिंह की गद्दारी को,
जो हराने चला
प्रताप को हल्दी घाटी में।
कौन भूलेगा
चेतक के अदम्य साहस को,
तीन टाँग पर नाला कूद
बचा लिया था राणा को।
कौन भूलेगा
भामाशाह की उस दिलेरी को,
दान दिया सारा धन
मेवाड़ को बचाने को।
राणा की सेना लड़ी ऐसी
अकबर था सकपकाया,
न हार हुई राणा की
मानसिंह लज्जाया।
राणा की मौत की
शोक की लहर ऐसी थी,
वह समय ऐसा था
जब अकबर की आँखें भीगी थी।
©Shubham36
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